जीडीपी में भारी गिरावट के बाद अब देश के सामने और क्या विकल्प है
भारत के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी की विकास दर में लॉकडाउन के शुरूआती महीनों वाली तिमाही में ज़बरदस्त गिरावट हुई है.
केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार 2020-21 वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच विकास दर में 23.9 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है.
ऐसा अनुमान लगाया गया था कि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी की दर पहली तिमाही में 18 फ़ीसद तक गिर सकती है.
जनवरी-मार्च तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में 3.1 फ़ीसद की वृद्धि देखी गई थी जो आठ साल में सबसे कम थी.
जीडीपी के आँकड़े बताते हैं कि जनवरी-मार्च तिमाही में उपभोक्ता ख़र्च धीमा हुआ, निजी निवेश और निर्यात कम हुआ. वहीं, बीते साल इसी अप्रैल-जून तिमाही की दर 5.2 फ़ीसद थी.
जीडीपी के इन नए आँकड़ों को साल 1996 के बाद से ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी गिरावट बताया गया है.
इन आँकड़ों पर मंत्रालय ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों के अलावा आँकड़ा इकट्ठा करने के तंत्र पर भी असर पड़ा है. मंत्रालय ने कहा है कि 25 मार्च से
जीडीपी में आई इस गिरावट के क्या मायने हैं और अब इस स्थिति से बाहर निकलने के क्या संभावित विकल्प हो सकते हैं,
जीडीपी क्या होती है ?
इस गिरावट को आप किस तरह देखते हैं? क्योंकि यह वो वक़्त था जिस समय देश में पूर्ण लॉकडाउन था. यह लॉकडाउन के दौरान का ही विवरण है. इसी दौरान के दुनिया के बीस बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों की भी बात करें तो भारत का प्रदर्शन सबसे निचले स्तर पर है. 23.9 फ़ीसद की जो गिरावट दर्ज की गई है, उससे यह पता चलता है कि कृषि क्षेत्र को छोड़कर बाक़ी जितने भी सेक्टर रहे हैं, उनको लॉकडाउन के दौरान मार खानी पड़ी है. चाहे वो होटल इंडस्ट्री हो, सर्विस इंडस्ट्री हो सब जगह गिरावट हुई है और इससे संकेत मिलते हैं कि लॉकडाउन के दौरान जो इंडस्ट्रियल या इकोनॉमिकल ऐक्टिविटी बंद थी उसकी वजह से अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ना था वो बड़ा ही स्पष्ट है. इससे यह भी स्पष्ट है कि जो संकट है वो बहुत बड़ा है और आने वाले समय में सरकार के सामने चुनौती होगी कि वो कैसे इससे निपटती है.
लोग ख़र्च करने के बजाय बचाने पर ज़ोर दे रहे हैं. यह समझने की ज़रूरत है कि हमारे समाज में जो यह बचाने की सोच है उसी के आधार पर आगे की नीतियाँ बनाने पर ज़ोर देना चाहिए. लोगों को ऐसे विकल्प दिये जाने चाहिए कि वे बैंकों में ज़्यादा से ज़्यादा और लंबे समय के लिए पैसा सुरक्षित रखें.
1 टिप्पणियाँ
Banko me paisa surakshit hai ye kisne bola bhajpa sab loot kar kha jayegi
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