कृषि बिल 2020 के मुख्य बिंदु
-इस विधेयक की मदद से किसान किसी फसल को पैदा करने के लिए पाँच साल तक का अनुबंध कर सकते हैं.
- विपक्ष का दावा है कि इस विधेयक की वजह से किसानों की ज़मीन कॉरपोरेट कंपनियों का कब्जा हो जाएगा.
- इस विधेयक की मदद से किसान एपीएमसी सिस्टम के बाहर भी जाकर अपनी फसल बेच सकते हैं. इसे ट्रेड एरिया बताया गया है
- कृषि व्यापार एपीएमसी से निकलकर ट्रेड एरिया में चला जाएगा ताकि ये खर्च बचाया जा सके.
- साल 2020 में ही गेहूं और धान की फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदे जाने के बदले में इन दोनों राज्यों को 80,528 करोड़ रुपये दिए गए हैं. इन दोनों राज्यों में अगले तीन चार हफ़्तों में गेंहूं और धान की फ़सल आने वाली है.
- अगर इन फ़सलों को बाज़ार की ताकतों के हवाले छोड़ दिया गया तो कीमतों में 15-20 फीसदी की कमी आ सकती है. साल 2019 और 2020 में भारत में गेहूं और चावल की खेती का कुल ऑफ़टेक क्रमश: 27.2 मिलियन टन और 35 मिलियन टन था.
- गन्ना किसान विरोध प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे ज़्यादातर अनुबंध के आधार पर खेती करते हैं. और गन्ने की मूल्य में गिरावट की कोई आशंका नहीं है. इसी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पंजाब और हरियाणा जैसे विरोध प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं.
- सरकार जो अनाज की ख़रीद करती है उसका सबसे अधिक हिस्सा यानी क़रीब 90 फीसदी तक पंजाब और हरियाणा से होता है. जबकि देश के आधे से अधिक किसानों को ये अंदाज़ा ही नहीं है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है.
- एक अनुमान के अनुसार देश में केवल 6 फीसदी किसानों को एमएसपी मिलता है. लेकिन 94 फीसदी किसानों को तो पहले ही एमएसपी नहीं मिलता और वो बाज़ार पर निर्भर हैं.
- अगर पीडीएस सिस्टम बंद किया जाता है तो सरकार को कुछ भी खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
- व्यापारी इस जरिए फसलों की जमाखोरी करेंगे. इससे बाजार में अस्थिरता उत्पन्न होगी और महंगाई बढ़ेगी. ऐसें में इन्हें नियंत्रित किए जाने की आवश्यकता है.
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