किसान आंदोलन: सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को नये साल से क्या उम्मीदें है ?


किसानों को प्रदर्शन करते हुए महीना भर से अधिक हो चुका है, केंद्र सरकार से जारी बातचीत में उन्हें अब तक कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है, पर उन्हें विश्वास है कि जीत उन्हीं की होगी.

 

किसानों की प्रमुख माँग अब यह है कि 'सरकार उन्हें बताये कि वो तीनों कृषि क़ानूनों को कैसे रद्द करने वाली है.' किसान संगठन चाहते हैं कि तीनों क़ानून वापस लिये जायें. इन क़ानूनों को किसान 'काले क़ानून' कह रहे हैं.

अपनी माँगों को लेकर किसान संगठन दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. दिसंबर-जनवरी की ठण्ड में, जब न्यूनतम तापमान 3-5 डिग्री तक जा रहा है, जो खुले में शून्य से भी ज़्यादा ठण्डा महसूस होता है, ऐसी परिस्थिति में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर एक 'टेंट सिटी' बना ली है.

साल 2020 हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है. यह साल ना सिर्फ़ कोरोना महामारी की वजह से, बल्कि भारतीय किसानों के एक अनुशासित और व्यवस्थित आंदोलन की वजह से भी बहुत यादगार रहेगा. हाल के दौर में लोगों ने भारत में ऐसा आंदोलन देखा नहीं होगा.

हमें बताया गया कि प्रदर्शन में शामिल लोगों ने यह तय किया है कि वो नये साल की आमद का जश्न नहीं मनायेंगे क्योंकि उनके बहुत सारे किसान साथी इस आंदोलन के दौरान मारे गये हैं.

हम हिलने वाले नहीं'

वीरपल कौर 26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल हैं.

वो कहती हैं, "26 नवंबर से शुरू हुआ प्रदर्शन हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा बदला है. जब हम यहाँ आये थे तो सबसे पहले हमारे ट्रॉलियों के घर बने. उसके बाद धीरे-धीरे हमारे मेहमान (प्रदर्शन को समर्थन देने वाले) बढ़ते गये और आज ये प्रदर्शन यहाँ तक आ पहुँचा है कि ये अपने आप में ही एक पिंड (गाँव) लगने लगा है."

उन्होंने कहा, "लोग कहते हैं कि सरकार और पीएम मोदी के मंत्रियों के साथ बैठक का कुछ नतीजा नहीं निकल रहा, लेकिन ऐसा नहीं है. हर बैठक के साथ लोगों की समझ बढ़ रही है. लोगों में एकजुटता बढ़ रही है. हौसला बढ़ रहा है."

वो बताती हैं, "जब हम पंजाब से चले थे तो यह इरादा करके ही चले थे कि इस क़ानून को रद्द करवाने के बाद ही वापस होंगे. इसलिए हम ना-उम्मीद तो कभी नहीं होते."

30 दिसंबर को किसान संगठनों की दो माँगें केंद्र सरकार ने मान ली थीं, लेकिन किसानों का कहना है कि जब तक कृषि क़ानूनों को रद्द नहीं किया जायेगा, वो हिलने वाले नहीं हैं.

बीबीसी पंजाबी सेवा के संवाददाता ख़ुशहाल लाली किसान आंदोलन को पहले दिन से कवर करते रहे हैं.

वो कहते हैं, "इस प्रदर्शन ने तीन बातें साफ़ कर दी हैं. पहली ये कि इस आंदोलन ने पंजाब की समृद्ध संस्कृति को साबित किया है. दूसरा ये कि ये देश एक लोकतांत्रिक देश है और यहाँ के लोग अपने हक़ लोकतांत्रिक तरीक़े से हासिल करने में सक्षम हैं. तीसरी ये कि किसानों के मुद्दे पर अब राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बात हो रही है."

2021 कैसा हो?

पंजाब के मोगा से ही रमन सिंह भी इस आंदोलन में शामिल हुए हैं. वो सरकार के प्रति सीधी नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं और कहते हैं, "अगर कोई एक चीज़ जो मैं चाहूं कि साल 2020 की कभी ना लौटे, तो वो यह सरकार है."

उन्होंने कहा, "आने वाले साल में हम बस ये चाहते हैं कि ये देश एक ख़ुशहाल देश बने, जहाँ इंसान की लूट ना हो."

रमन प्रदर्शन-स्थल का उदाहरण देते हुए कहते हैं, "जैसा प्यार यहाँ है, बस वैसा ही प्यार देश में हो जाये."

अंत में हमारी मुलाक़ात दिल्ली में रहने वाले मनप्रीत सिंह से हुई. पेशे से आईटी सेक्टर में काम करने वाले मनप्रीत हर साल किसी न किसी पार्टी में होते थे लेकिन वो नया साल मनाने के लिए ही सिंघु बॉर्डर पहुँचे थे.

उन्होंने कहा, "हर साल तो हम अपने दोस्तों के साथ नया साल मनाते ही हैं, लेकिन इस बार यहाँ आना, अपने भाइयों के साथ खड़ा होना मुझे ज़रूरी लगा."

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